See also: http://www.vjsingh.info/sandhya.html
http://www.vjsingh.info/homa.html
http://elibrary.thearyasamaj.org/
http://www.njaryasamaj.org/docs/hawansandhya.pdf
http://www.aryasamaj.org/newsite/node/25
http://www.swamiagnivesh.com/aryasamaj.htm
https://www.youtube.com/watch?v=9e6GWpxkz4o
http://theheartofthesun.com/AryaSamajDownloads.php (http://jagbm.com/Sandhya.pdf over there)
ओ३म शन्नो॑ दे॒वीर॒भिष्ट॑य॒ऽआपो॑ भवन्तु पी॒तये॑।
शँयोर॒भिस्त्र॑ वन्तु नः – यजुँ ३६।१२
अर्थ – (देवीः आपः) सबका प्रकाशक, सबको आनन्द देनेवाला और सर्वव्यापक ईश्वर (अभिष्टये) मोवाच्छित आनन्द के लिऍ और(पीतये) पूर्णानन्द की प्राप्-ति के लिए (नः) हमको (शम्) कल्याणकारी (भवन्तु) हो अर्थात् हमारा कल्याण करे। वही परमेश्वर (नः) हमपर (भवन्तु) सुख की (अभिस्त्रवन्तु) सर्वथा वृष्ट करे।
ओं वाक् वाक् – इस मन्त्र से मुख का दक्षिण और वाम पाश्वर्।
ओं प्राणः प्राणः – इससे दक्षिण और वाम ने।
ओं चक्षुश्चक्षः – इससे दक्षिण और वाम नेत्र।
ओं श्त्रोत्रं श्त्रोत्रं – इससे दक्षिण और वाम श्त्रोत्र।
ओं नाभिः – इससे नाभि।
ओं हृदयम् – इससे हॄदय।
ओं कण्ठः – इससे कण्ठ।
ओं शिर। – इससे मस्तक।
ओं बाहुभ्यां यशोबलम् – इससे दोनों भुजाओं के मूल स्कन्ध
ओं करतलकरपृष्ठे – इससे दोनों हाथों के उपर-तले स्पर्श के
अर्थ – हे ईश्वर! आपकी कृपा से (वाक् वाक्) मेरी वाणी और रसना (प्राणः प्राणः) मेरा श्वासोच्छ्वास अथवा प्राण और अपान(चक्षुः चक्षुः) मेरे दोनों नेत्र, (श्त्रोत्रं श्त्रोत्रं) मेरे दोनों कान (नाभिः) मेनी नाभि, प्रजनन-यन्त्र का केन्द्र (हृदयम्) मेरा हृदय (कणठः) मेरा कण्ठ (शिरः) मेरा शिर, (बाहुभ्याम्) मेरी दोनों भुजाए और (करतलकरपृष्ठे) मेरे हाथ की हथेली और पीठ – सभी अङग् मुदृढ़, यश और बल से युक्त हों।
ओं भूः पुनातु शिरसि – इस मन्त्र से सिर पर।
ओं भूवः पुनातु नेत्रयोः – इस मन्त्र से दोनों नेत्रों पर।
ओं स्वः पुनातु कण्ठे – इस मन्त्र से कण्ठ पर।
ओं महः पुनातु हॄदये – इस मन्त्र से हृदय पर।
ओं जनः पुनातु नाभ्याम् – इसे नाभि पर।
ओं तपः पुनातु पादयों – इससे दोनों ;पैरों पर।
ओं सत्यं पुनातु पुनश्शिरसि – इससे पुनः मस्तक पर।
ओं खम्ब्रहम् पुनातु सव्रत्र – इस मन्त्र से सब अङोंग फर छींटे दें।
अर्थ – (भुः पनात शिरसि) सत्यस्वरूप ब्रहम् सिर मे पवित्रता करे। (भुवः पुनातु नेत्रयो) चित्स्वरूप=ज्ञानस्वरूप ब्रहम् हमारे नत्रों में पवित्रता करे। (स्वः पनातु कण्ठे) आनन्दस्वरूप ब्रहम् कण्ठ में पवित्यता करे। (महः पिनातु हदये) सबसे बड़ा और सबका पुज्य ब्रहम् हमारे हदमें पवित्रता करे। (जनः पुनातु नाभ्याम्) सब जगत् का उत्पादक ब्रहम् हमारी नाभि में पवित्रता करे। (तपः पुनातु पादयोः) दुष्टों को सन्तापकारी और ज्ञानमय ब्रहम् हमारे पैरों में पवित्रता करे। (सत्यं पुनातु पुनः शिरसि) अविनाशि ब्रहम् पुः हमारे सर में पवित्रता करे। (खम्ब्रहम् पुनातु सर्वत्र) आाकाश के तुल्य व्यापक ह्रहम् सर्वत्र हमारे सब अङोंग् में पवित्रता करे। इस प्रकार ईश्वर के नामों के नामों के अथों का स्मरण करते हुए मार्जन करें।
ओं भूः । ओं भुवः । ओं स्वः । ओं महः । ओं जनः । ओं तपः । ओं सत्यम् ॥ – तैत्ति० प्र० १।२
ओ३म् ऋ॒तं च॑ स॒त्यं चा॒ भी॑ध्दात्तप॒सोऽध्य॑जायत। ततो॒ रात्र्य॑जायता ततः॑ समु॒द्रोऽअ॑र्ण॒वः ॥१॥
ओ३म् स॒मु॒द्राद॑र्ण॒वादधि॑ संवत्स॒रोऽअ॑जायत। आ॒होरा॒त्राणि॑ वि॒दध॒ध्दिश्व॑स्य मिष॒तोव॒शी॥२॥
ओ३म् सू॒र्याच॒न्द्र॒मसौ॑ धाता य॑तापू॒र्वम॑कल्पयत्। दिवं॑ च पृथि॒वीं चा॒न्तरि॑क्ष॒मथो॒ स्वः॑॥३॥
OM SHAANTIH – Cosmic peace!
SHAANTIH – Spritual peace!!
SHAANTIH – Material peace!!!Iti Sandhyo-paasa-naa vidhih
Here comes to an end the Sandhyaa Meditation