करेले की करामात छूँछ गली की पूँछ पास, है एक सुंदर घर | पाये जाते हैं, वहँ हमरे चचा छछुंदर | चचा संग एक चाची भी शोभा पाती हैं | हम लोगों में वह आंटी जी कहलाती हैं | एक शुभ दिन, अंकिल आंटी में वार हो गयी | चन्द मिनट में खबर मोहल्ले पार हो गयी | चचा भूल से घर ले आये कहीं करेला ! इसी बात पर शुरू हुआ था घरू झमेला | चाची ने देखा थैले में, ककक् करेला | उमड़ा उनके काल कराल क्रोध का रेला | बोलीं कटहल, कद्दू, कमरख, ककड़ी, केला | सब्ज़ी इतनी हैं, तुमको बस मिला करेला | खाने में कड़वा, जो सुनने तक में कसैला | बीज निकाल-निकाल मर गये मजनूँ लैला | इसी बीच में तैश में आये, बोले चच्चा | गांधीजी तक लेउत रहे करेला बच्चा ! अब क्या था, चाची का पारा कौन सँभारे | आखिर पूँछ दबा कर भागे चचा बिचारे | अब पोज़ कुछ यों है :- चाचा चक्की पर पूँछें फटकार रहे हैं | चची करेले खींच-खींच कर मार रहीं हैं | उधर अस्त्र में चिमटा, चप्पल, बेलन फरफर | इधर निरस्त्र बिचारे हमरे चाचा का सर | गरजत गरजत बरसीं चाची आँसू भर भर | कोसा मायके वालों को अपनी शादी पर | आंसू के पैटन टैंकों से डर डर थरथर | रखा संधि प्रस्ताव चचा ने हार मान कर | ताशकंद समझौता उतरा इन शर्तों पर | खाना आज बनायें मिस्टर चचा छछुंदर ||